श्री गणेश के 108 नाम और हिंदू संस्कृति में उनका महत्व

श्री गणेश देवों के देव महादेव एवं जगत-जननी माता पार्वती के पुत्र हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी का जन्म भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। तब से इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

अलग-अलग पुराणों के अनुसार गणेश जी के जन्म की अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। वराह पुराण में लिखा है, कि भगवान शिव ने गणेश जी को पांच तत्वों से बनाया है। दरअसल, एक बार शिवजी गणेश जी को बना रहे थे तभी सारे देवताओं में यह बात फैल गई कि शिव जी गणेश जी को बना रहे हैं और सारे देवताओं को यह डर सताने लगा कि गणेश जी के आने से सबका आकर्षण उन्हीं की ओर चल जाएगा, और देवताओं की सुंदरता की तारीफ कोई नहीं करेगा जब शिवजी को यह बात पता चली तो उन्होंने गणेश जी के पेट को बड़ा कर दिया और मुख हाथी का लगा दिया इस तरह से गणेश जी की उत्पत्ति हुई।

वहीं दूसरी तरफ गणेश पुराण के अनुसार गणेश जी को माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे उबटन से बनाया था। लेकिन इस बात से अनजान शिव जी ने गणेश जी का गला क्रोध में आकर काट दिया। जब यह बात मां पार्वती को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुई, और उन्होंने शिव जी से कहा कि वह उनके बेटे को वापस जीवित करें। शिव जी ने गरुड़ जी को आदेश दिया कि जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर कर सो रही होगी उसका सिर काटकर लाएं। तब गरुड़ जी हथिनी के बच्चे का सिर काट कर ले आए, और शिवजी ने हाथी का मुख गणेश जी के धड़ पर लगाकर उन्हें जीवित कर दिया। इस तरह गणेश जी के शरीर की रचना हुई। शिव जी ने उन्हें वरदान दिया कि प्रत्येक कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा होगी।

तब से लेकर अब तक गृह प्रवेश हो या विवाह या घर परिवार में कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले गणपति स्थापना की जाती है। लोगों की मान्यता है कि सर्वप्रथम प्रथम पूज्य देव गणेश की मंगल स्थापना करने से उनके किसी भी शुभ काम में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी और अगर कोई विघ्न आता भी है, तो विघ्नहर्ता श्री गणेश सभी विघ्नों को हर लेते हैं।

ऐसा माना जाता है कि गणेश जी के नाम की महिमा भी अनेक है। यदि आप अपने बच्चों का नाम गणेश जी के नाम पर रखते हैं तो इसका बहुत लाभ होता है। चलिए इसे समझते हैं।

भगवान गणेश के प्रमुख नाम और उनका महत्व

सनातन संस्कृति में नामकरण सोलह संस्कारों में बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। तभी तो बच्चों का नाम रखने से पहले कई रीति रिवाज निभाए जाते है। हिंदू धर्म में नाम रखने से पहले नाम के शब्द का अर्थ निकाला जाता है। चलिए गणेश भगवान के सभी नामों के बारे में जानते हैं –

1. बाल गणपति

अर्थ: सबसे प्रिय बालक या गणपति जी का प्यारा बालक रूप।

बाल गणपति को गणपति जी के सभी रूपों में सबसे पहला रूप माना जाता है। यहाँ बाल का अर्थ है शिशु अर्थात बालक। इस तरह “बाल गणपति” गणपति जी का बालक रूप कहा जाता है।

सांस्कृतिक महत्व: भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश के बालक रूप को सबसे प्यारा और सुंदर बताया गया है। उन्हें पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। कहा जाता है कि गणेश जी कृषि और सभी प्रकार की वस्तुएं जो धरती पर उगाई जाती है उनकी प्रचुरता का प्रतीक है।

बाल गणेश की प्रतिमा: बाल गणेश का चेहरा हाथी के मुख के समान होता है। उनका रंग उगते हुए सूरज के समान लाल है और उनके गले में सुंदर फूलों की माला है। उनके चार हाथ हैं, जिसमें गन्ना, कटहल, आम, और केले जैसे स्वादिष्ट फल है। साथ ही उनकी सूंड में वह मोदक पकड़े हुए हैं।

कहानियाँ और किंवदंतियां: एक समय पार्वती मां स्नान करने से पहले शरीर पर हल्दी का उबटन लगा रही थी जब उन्होंने अपने शरीर से उबटन उतारा तो उसका एक पुतला बना दिया, और उसमें प्राण डाल दिए इस उबटन से भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई। भगवान गणेश के उसी रूप को बाल गणपति के रूप में जाना जाता है।

2.भालचंद्र

अर्थ: जिसके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हो

सांस्कृतिक महत्व: चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। गणेश जी का इस चतुर्थी से बहुत गहरा संबंध है, क्योंकि यह उनकी जन्म की तिथि है और इसलिए हिंदू धर्म में सभी इस दिन गणेश जी की पूजा करते हैं।

भालचंद्र की प्रतिमा: भालचंद्र जी अपने इस स्वरूप में अपने ऊपर के दोनों हाथों में पाश और कुल्हाड़ी लिए है और नीचे के हाथों में अभय मुद्रा के साथ बैठे हैं। उनके बाजू में मोदक से भरा हुआ कटोरा है और हाथी की सूंड और मानव शरीर के साथ उनका गोल पेट उनके प्रत्येक स्वरूप का हिस्सा है। साथ ही उनकी सूंड का बाई और मुड़ना उनकी एक विशेषता है।

कहानी और किंवन्तियां: गणेश पुराण के अनुसार एक बार चंद्रमा ने गणपति जी का मजाक उड़ाया, और गणेश जी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि वह अपनी सुंदरता को हमेशा धारण नहीं कर पाएंगे। यह सुंदरता भी कमजोर हो जाएगी और एक दिन आप किसी के सामने नहीं आ पाएंगे। इस श्राप को सुनकर चंद्रमा ने गणेश जी से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। तब गणेश जी ने सभी देवताओं के अनुरोध करने पर अपने श्राप को भाद्रपद की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तक ही सीमित रखा और कहां की भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ही तुम अदृश्य रहेंगे और उसके बाद हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मेरे साथ ही तुम्हारी पूजा होगी। इसके अतिरिक्त तुम मेरे माथे पर विराजमान रहेंगे। इस प्रकार चंद्रमा को मस्तक पर धारण करके गणेश जी भालचंद्र बन गए।

3. बुद्धिनाथ

अर्थ: बुद्धि के भगवान

सांस्कृतिक महत्व: गणेश जी को बुद्धि का देवता कहा जाता है और जब किसी व्यक्ति के पास बुद्धि की कमी होती है, तो वह सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करके उनको प्रसन्न करते हैं।

बुद्धिनाथ की प्रतिमा: इस रूप में भगवान गणेश गजमुखी हैं। उनके हाथी जैसे बड़े-बड़े कान उनकी बुद्धि को प्रदर्शित करते हैं। उनकी छोटी-छोटी आंखें बताती हैं कि वह सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु पर भी नजर रखते हैं। उनके दो दांत है, जिनमें एक पूर्ण है और दूसरा अपूर्ण। उनके आसपास रिद्धि और सिद्धि है जो बताती है की अगर व्यक्ति बुद्धि का सदुपयोग करता है, तो उसे जीवन में शांति और सुख का यश मिलता है।

कहानी और किवन्तियां: पुराणों के अनुसार एक बार गणेश जी के पिता शिव जी ने अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय, गणेश और सभी देवी देवताओं के बीच एक प्रतियोगिता रखी। इस प्रतियोगिता के अनुसार जो भी पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले वापस आएगा, वही प्रतियोगिता जीतेगा।

यह सुनकर सभी देवी देवता और कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चले गए, लेकिन गणेश जी वहीं खड़े रहे उन्होंने पृथ्वी की बजाय अपने माता-पिता के चारों ओर चक्कर लगाना शुरू कर दिया। जब गणेश जी से पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो उन्होंने कहा कि “मेरा संसार तो मेरे माता-पिता ही है, तो मैं तो उन्हीं की परिक्रमा करूंगा” गणेश का यह जवाब सुनकर शिवजी प्रसन्न हो गए और गणेश जी को उस प्रतियोगिता का विजेता घोषित कर दिया और उस दिन से गणेश जी को बुद्धि का देवता कहा जाने लगा।

4. धूम्रवर्ण

अर्थ: धुंए को उड़ाने वाले

सांस्कृतिक महत्व: यह गणेश जी का आठवां अवतार है। इस अवतार को श्री गणेश ने अहंतासुर नाम के दैत्य से देवताओं के साथ पूरे ब्रह्मांड को मुक्त करने के लिए धारण किया था।

धूम्रवर्ण की प्रतिमा: धूम्रवर्ण गणेश के पांच गजमुख हैं। जिन पर अत्यधिक तेज प्रतीत होता है। उनकी सूंड में एक पुष्प लगा हुआ है। उनके माथे पर मुकुट है, उनके एक हाथ में पाश और दूसरे में शंख है। उनकी प्रतिमा बहुत विशाल है और वह मूषक पर विराजमान है। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वह किसी असुर का वध करने के लिए आए हो।

कहानी और किवन्तियां: पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने सूर्य देव को कर्म अध्यक्ष बना दिया। अध्यक्ष बनाकर सूर्य देव के मन में अपने आप पर घमंड आ गया और तभी उन्हें छींक आ गई। इसी छींक से एक दैत्य पुरुष प्रकट हुआ और वह आगे जाकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन गया। उस असुर का नाम अहंतासुर था। अहंतासुर पूरे ब्रह्मांड पर कब्जा करना चाहता था, इसलिए उसने गणेश जी की तपस्या की। हजारों वर्ष तक गणेश जी की तपस्या करने के बाद गणेश जी उसके सामने प्रकट हो गए और उससे वर मांगने को कहा।

उसने ब्रह्मांड की राज्य के साथ अमरता और अजेय होने का वरदान मांग लिया और गणेश जी ने उसे वरदान दे दिया। इसके बाद अहंतासुर ने अपने गुरु और ससुर के साथ मिलकर पृथ्वी पर अपना आधिपत्य हासिल कर लिया और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। जिससे सभी देवी देवता डरकर शिव जी के पास गए और उनसे इस परेशानी से छुटकारा पाने का उपाय पूछा। शिव जी ने देवताओं को गणेश जी की उपासना करने को कहा। गणेश जी ने सभी देवी देवताओं को धूम्रवर्ण के रूप में दर्शन दिए और कहा कि वह उन्हें अहंतासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएंगे।

धूम्रवर्ण ने नारद को उस दैत्य के पास भेजा। वहां जाकर नारद ने दैत्य से कहा कि अगर तुमने अपने अत्याचार नहीं रोके और गणेश जी की शरण में नहीं आए तो तुम्हारा अंत निश्चित है। लेकिन अहंतासुर नहीं माना। जब यह खबर धूम्रवर्ण को मिली, तो उन्होंने अपना पाश असुर सेना पर छोड़ दिया। यह देखकर अहंतासुर बहुत डर गया और धूम्रवर्ण की शरण में चला गया और उनसे क्षमा मांग ली। इसके बाद गणेश जी ने उसे प्राण दान दिया साथ ही बुरे काम छोड़ने के लिए कहा।

5. एकदंत

अर्थ: एक दांत वाले

सांस्कृतिक महत्व: सनातन धर्म में कहा जाता है कि जब गणेश जी के मुख में दो दांत थे, तब उनमें द्वैतभाव था। लेकिन एकदंत वाले हो जाने के बाद से अद्वैतभाव आ गया। इसके अलावा एकदंत की भावना यह भी कहती है कि जीवन में सफल वही लोग हो पाते हैं, जिनका एक लक्ष्य होता है।

एकदंत की प्रतिमा: गणेश जी की यह एकदंता प्रतिमा ढोलक के आकार की है और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में बैलाडीला की ढोलकल पहाड़ी पर स्थित मंन्दिर में यह प्रतिमा विराजमान है। ललितासन मुद्रा में विराजमान एकदंत जी की यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है।

यह वही पहाड़ी है जहां भगवान परशुराम और गणेश जी का युद्ध हुआ था और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का दांत तोड़ दिया था। इसलिए इस गांव का नाम फरसपाल है।

कहानी और किवन्तियां: एक बार भगवान शंकर और मां पार्वती अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे। उन्होंने गणेश जी से कक्ष के बाहर पहरा देने के लिए कहा और कहा कि किसी को भी अंदर ना आने दे। गणेश जी कक्ष के बाहर पहरा दे रहे थे। तभी वहां पर परशुराम आए और शिवजी से मिलने के लिए जाने लगे। गणेश जी ने उन्हें रोका। तो परशुराम को क्रोध आ गया और क्रोध में आकर परशुराम ने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया। तब से उन्हें एकदंत कहा जाने लगा।

6. गजकर्ण

अर्थ: हाथी की तरह कान वाले

सांस्कृतिक महत्व: गणेश जी के कान हाथी के कानों की तरह बड़े हैं, जो कि उनकी अतुल्य बुद्धि को दर्शाता है। इसलिए उन्हें बुद्धि का अनुष्ठान देव भी कहा जाता है। कहा जाता है कि गणेश जी अपने बड़े-बड़े कानों से अपने सब भक्तों की सुन लेते हैं, लेकिन करते वही है जो उनके हित में होता है।

गजकर्ण की प्रतिमा: गणेश जी के आकर्षक गजमुख पर उनके बड़े-बड़े कर्ण अत्यधिक सुंदर प्रतीत होते हैं। गणेश जी के सुंदर कर्ण की प्रतिमा आपको प्रत्येक गणेश मंदिर में देखने को मिल जाएगी, लेकिन गुजरात के सिद्धिविनायक मंदिर में स्थित गणेश जी की बड़े-बड़े कानों वाली प्रतिमा बहुत आकर्षक लगती है।

कहानी और किवन्तियां: गणेश पुराण के अनुसार जब शिवजी ने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, तब गरुड़ जी हथिनी के बच्चे का सिर लेकर लाए थे। जिसे शिव जी ने गणेश जी के धड़ पर लगा दिया था और हाथी की तरह बड़े-बड़े कान होने से उनका नाम गजकर्ण रखा गया।

7.गजानन

अर्थ: हाथी के मुख वाले भगवान

सांस्कृतिक महत्व: हिंदू धर्म में सिर्फ गणेश जी ही ऐसे भगवान है जिनका मुख गज का है। अपनी रिद्धि, सिद्धि, बल, बुद्धि के अलावा वह हाथी के समान मुख के लिए भी जाने जाते हैं।

गजानन की प्रतिमा: उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की बानपुर तहसील में स्थित ग्राम गणेशपुरा गजानन की मूर्ति पूरे बुंदेलखंड में प्रसिद्ध है। जहां गजानन की 22 भुजाओं की आदमकद प्रतिमा विराजमान है।

कहानी और किवन्तियां: पुराणों के अनुसार गणेश जी का सिर काटने से पहले उन्हें विनायक के नाम से पुकारा जाता था। लेकिन जब उनका मस्तक काटा और उन पर हाथी का मस्तक लगाया, तब से उन्हें गजानन कहा जाने लगा।

8.गजवक्र

अर्थ: हाथी की सूंड वाले

सांस्कृतिक महत्व: पुराणों के अनुसार गणेश जी ने विशाल समुद्र को पार करने के लिए गजवक्र रूप धारण किया था।

गजवक्र की प्रतिमा: गणेश जी के इस रूप में उनकी सूंड बहुत विशाल प्रतीत होती है। खडगासन में प्रतिष्ठित श्री गणेश की प्रतिमा अत्यंत सुंदर लगती है। गणेश जी की सूंड से जीवन में हमेशा सक्रिय रहने की शिक्षा देती है। उनकी हिलती डुलती सूंड कहती है कि हमें अपने जीवन में चलते-फिरते रहना चाहिए।

कहानी एवं किवन्तियां: जब गणेश जी की विशाल देवसेना को समुद्र पार करना था, तब गणेश जी ने समुद्र के ऊपर अपनी सूंड का सेतु बना दिया, और उस पर चढ़कर सभी ने समुद्र पार किया। तब से उन्हें गज वक्र के नाम से जाना जाने लगा।

9.गणाध्यक्ष

अर्थ: सभी गणों अर्थात सभी देवताओं के अध्यक्ष।

सांस्कृतिक महत्व: गणेश जी का गणाध्यक्ष स्वरूप अत्यंत विशाल और विराट है। यहां पर गण का मतलब देव और अध्यक्ष मतलब स्वामी है। गणाध्यक्ष यानी देवताओं में पूज्य। गणेश जी का यह रूप अत्यंत सुंदर है। गणाध्यक्ष को देवों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। सभी देव गण इसी स्वरूप में श्री गणेश जी की आराधना करते है।
गणाध्यक्ष प्रतिमा: चतुर्भुज धारी श्री गणेश अपने इस स्वरूप में स्वर्ण मुकुट धारण किए स्वर्ण कुंडल माला में विराजमान है। केसर तिलक लगाए इस रूप में श्री गणेश स्वयं देवताओं के स्वामी प्रतीत होते है।

कहानी और किवन्तियां: तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली त्रिची में रॉक फोर्ट नामक पहाड़ी के सबसे ऊपर स्थित ऊंची पिलियर मंदिर बहुत ही प्राचीन माना जाता है। प्रतिमा से जुड़ी एक मान्यता है कि रावण ने बहुत ही तपस्या कर शिव जी से स्वयं शिव जी को ही मांग लिया। ऐसे में शिव जी ने रावण को अपने स्वरूप शिवलिंग को लंका में स्थापना करने के लिए वरदान स्वरूप दिया। देवता नहीं चाहते थे कि शिवलिंग की स्थापना राक्षस राज्य लंका में हो। इसलिए सभी देवता गण गणेश जी के पास पहुंचे और उनकी स्तुति आराधना करने लगे। गणेश जी से विनती की कि हे गणेश जी आप हमारी रक्षा कीजिए और कृपा करके शिवलिंग को लंका में स्थापना करने से रोकें।

तब गणेश जी एक बालक का वीर धारण करके रावण के पीछे गए। शिव जी ने शिवलिंग को इस शर्त पर दिया था कि वह शिवलिंग को नीचे नहीं रखेंगे। यदि ऐसा होता है तो वह शिवलिंग वहीं स्थापित हो जाएगा। गणेश जी ने बालक रूप धारण किया और रावण को शौच जाने के लिए प्रेरित किया। लंकेश गणेश जी के बाल स्वरूप को नहीं जान पाए और उन्हें शिवलिंग थमा दिया और कहा कि इसे नीचे न रखें। अब बाल स्वरूप गणेश जी ने वह मूर्ति लेकर उनके जाने के बाद भूमि पर रख दिया और जाकर पहाड़ी के पीछे छुप गए। रावण जब वापस आया और उसने देखा की शिवलिंग भूमि पर विराजित है, तो उसे बहुत क्रोध आया। वह समझ गया कि जरूर इसमें देवताओं की कोई चाल होगी। रावण गणेश जी को ढूंढते-ढूंढते पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया। जब उसने बालक को देखा, तो उसके सिर पर प्रहार किया। तब गणेश जी अपने असली स्वरूप में प्रकट हो गए। यह देखकर रावण बहुत पछताया कि उनके आराध्य श्री शिव जी के पुत्र गणेश जी पर स्वयं रावण ने प्रहार किया। उन्होंने क्षमा मांगा और तभी से गणेश जी को सभी देवताओं ने गणाध्यक्ष की उपाधि दी और तभी से इस चोटी पर गणेश जी विराजमान है।

10. गणपति

अर्थ: गण का अर्थ होता है कोई विशेष समुदाय और पति अर्थात पालन करने वाला। शिवगणों एवं देवों के स्वामी होने के कारण श्री गणेश को गणपति कहते है।

सांस्कृतिक महत्व: सनातन संस्कृति में तीन गण माने जाते हैं – देवगण, मनुष्य गण और राक्षस गण। यह तीनों गण श्री गणेश को पूजते है। इसलिए गणेश जी को गणपति भी कहा जाता है। कहा तो यह भी जाता है की श्री गणेश ही गणप्रमुख है, इसलिए इनका नाम गणपति हो गया।

गणपति की प्रतिमा: श्री गणपति जी की यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची और विशाल गणेश प्रतिमा के तौर पर विख्यात है। इंदौर शहर के पश्चिम क्षेत्र में मल्हारगढ़ के आखिरी छोर पर यह गणेश विराजमान है। उन्हें उज्जैन के चिंतामन गणेश की प्रेरणा से नारायण दाधीच ने 120 वर्ष पूर्व बनवाया था।

कहानी एवं किवदंती: सनातन धर्म के अनुसार शिव जी के वरदान से श्री गणेश सभी गणों के प्रमुख हुए और इसी वजह से उनका नाम गणपति हो गया।

11.गौरीसुत

अर्थ: गौरी अर्थात माता पार्वती और सुत का अर्थ पुत्र होता है। श्री गणेश माता पार्वती के प्रिय पुत्र है, इसलिए उन्हें प्रेमपूर्वक गौरी सुत भी कहा जाता है।

सांस्कृतिक महत्व: हमारे सनातन धर्म में पौराणिक काल में बालक व बालिकाओं को उनके नाम के आगे उनकी माता के नाम लगाकर ही पुकारा जाता था। जैसे कौशल्या नंदन राम, देवकीनंदन श्री कृष्ण इसी परंपरा अनुसार श्री गणेश को प्राचीनकाल से ही गौरी सुत कहा जाता है।

गौरीसुत की प्रतिमा: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर गांव जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर स्थित है। गर्भगृह में प्रवेश करते ही हमें गौरी सुत गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती है। यहां पार्वती नंदन तीन रूपों में विराजमान है।

कहानी एवं किवदंती: गौरी जी गणेश जी की माता पार्वती का अवतार हैं। हालांकि, महाराष्ट्र में यह माना जाता है कि गौरी गणेश की बहन है, जो उनसे मिलने आती है। अपने भाई की तरह किसी के घर में मां गौरी का आगमन स्वास्थ्य, धन, सुख और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।

12. लम्बकर्ण

अर्थ: लम्बकर्ण अर्थात लंबे कान वाले देव।

सांस्कृतिक महत्व: सनातन संस्कृति में लंबे कान शुभता और बुद्धि का प्रतीक है। आज भी हमारे बुजुर्ग कहते है कि जिस बालक के कान जन्म के समय ही लंबे होते हैं, उसकी बुद्धि तीव्र होती है। श्री गणेश को बुद्धि का देवता कहा गया है। एक कारण यह भी है कि उनके भक्त उन्हें प्रेमपूर्वक लंबकर्ण बुलाते है। गणेश जी के लंबे कान सौभाग्य के सूचक माने जाते हैं। गणेश जी के लंबे कान के बारे में मान्‍यता है कि वह सभी भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं और फिर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, जिस व्यक्ति के कान बड़े होते हैं, उसे विद्वान और भाग्यशाली माना जाता है।

लम्बकर्ण की प्रतिमा: बीकानेर के बंगला नगर के ब्रह्म सागर में स्थित गणेश मंदिर है, जहां भक्त गर्भगृह में जाकर दर्शन कर सकते हैं और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां जो भक्त आते हैं, वह भगवान गणेश के कान में अपनी मनोकामना बोल कर जाते हैं। उनका मानना है कि इससे उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

कहानी एवं किवदंती: पुराणों के अनुसार गणेश सौभाग्य व बुद्धि के सूचक हैं। उनके आगमन से ही सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाते हैं। हिंदू संस्कृति में लंबे कानों को सौभाग्य का सूचक माना जाता है और श्री गणेश के लंबे कानों की वजह से ही उनका नाम लंबकर्ण पड़ा।

13.लंबोदर

अर्थ: लंबे उदर वाले देव।

सांस्कृतिक महत्व: श्री गणेश ने अपने जन्म के कुछ समय पश्चात ही सम्पूर्ण सृष्टि एवं सभी देवताओं का ज्ञान प्राप्त किया। शिव जी के डमरू की ध्वनि से सम्पूर्ण देवताओं का माता पार्वती की पायल की ध्वनि से नृत्य एवं संगीत का, एवं देवों की प्रेरणा से सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान श्री गणपति को प्राप्त हुआ।

लंबोदर की प्रतिमा: सिंहपुर ग्राम के मंदिर में विराजित लंबोदर महाराज के चमत्कार की कहानियां जगत विख्यात है। यहां भगवान गणेश आदिकाल से बैठे हुए है।

कहानी एवं किवदंती: ब्रह्म पुराण के अनुसार श्री गणेश माता पार्वती के लाडले थे। बाबा को हमेशा इस बात का डर रहता था कि कार्तिक आकर माता का दूध न पी ले, इसलिए वह दिनभर माता के आंचल में छुपकर दूध पीते रहते थे। उनकी इसी आदत के कारण भगवान शिव ने मजाक में कह दिया कि तुम इतना दूध पीते हो लंबोदर हो जाओगे बस उसी दिन से गणपति बप्पा का नाम लंबोदर हो गया।

एक कहानी यह भी है कि भगवान इंद्र के साथ खूब लड़ने के बाद बाबा को बहुत भूख लगी। उन्होंने खूब सारे फल खा लिए गंगाजल पी लिया माता के बने सभी मोदक खा लिए। इसके कारण उनका पेट बढ़ गया और तभी से उनका नाम लंबोदर हो गया।

14. महाबल

अर्थ: महाबल अर्थात अति बलशाली महाबली।

सांस्कृतिक महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव जी ने श्री गणेश को गजमुख लगाकर पुनर्जीवित किया। तब सभी देवताओं और त्रिदेवों ने आशीर्वाद स्वरूप अपनी अपनी शक्तियों के अंश गणेश जी को भेंट किए। श्री गणेश पहले से ही अत्यंत शक्तिशाली थे। त्रिदेवों एवं अन्य देवताओं की शक्ति प्राप्त होने के बाद उन्हें महाबल कहा जाने लगा।

महाबल की प्रतिमा: गणेश जी का यह रूप योद्धा रूप है। श्री गणेश के इस रूप में उनके 16 हाथ है, जिनमे गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित कई अस्त्र है। श्री गणेश अपने महाबल रूप में युद्ध कला में पारंगत है। माना जाता है की श्री गणेश को इस रूप में पूजने से बल व साहस की प्राप्ति होती है।

कहानी एवं किवदंती: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मत्सरासुर ने देवलोक में हाहाकार मचा दिया था। सारे देवता शिव जी की शरण में आ गए। शिव जी ने उन्हें आश्वासन दिया की वह गणपति की आराधना करें। श्री गणेश उनकी सहायता अवश्य करेंगे। सभी देवताओं ने श्री गणेश की आराधना की ओर गणपति ने अपने महाबल रूप में मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। तभी से मत्सरासुर भी गणपति जी का भक्त हो गया और गणेश जी को महाबली कहा जाने लगा।

15. महागणपति

अर्थ: सर्वशक्तिमान , देवों के देव अर्थात देवों द्वारा पूज्य देव रक्षक गणपति।

सांस्कृतिक महत्व: अष्टविनायका में श्री गणपति जी का यह स्वरूप सबसे शक्तिशाली एवं अलौकिक माना गया है। महागणपति रूप में श्री गणेश अष्टभुजा, दशभुजा अथवा द्वादश भुजा वाले माने जाते है। कहा जाता है कि श्री गणेश का यह स्वरूप रक्तवर्ण है। इस रूप में श्री गणेश अपने पिता स्वयंभू शिव जी की तरह ही त्रिनेत्र धारी है। महागणपति स्वरूप में श्री गणेश के साथ उनकी शक्ति भी विराजित है।

महागणपति की प्रतिमा: गणपति के प्रमुख आठ मंदिरों में से एक श्री महागणपति मंदिर भी है। यह मंदिर पुणे के रांजन गांव में स्थित है। यह मंदिर पुणे अहमदनगर राजमार्ग से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि बहुत भव्य व सुंदर है। इस मंदिर में विराजित महागणपति की मूर्ति को माहोतक के नाम से भी जाना जाती है, क्योंकि श्री गणपति की इस मूर्ति के 10 सूंड एवं 20 हाथ है।

कहानी एवं किवदंती: त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने शिव के वरदान से तीन शक्तिशाली किलों का निर्माण किया था। जिससे वह स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी प्राणियों को कष्ट पहुंचा रहा था। त्रिपुरासुर के अत्याचार से तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। सभी देव एवं ऋषिगण शिव जी से उस राक्षस से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना करने पहुंचे। शिवजी ने गणेश जी का आवाहन किया और सभी देवताओं ने गणेश जी से रक्षा हेतु प्रार्थना की। त्रिपुरासुर को मारने के लिए ही गणपति ने महागणपति रूप धारण किया और त्रिपुरासुर का वध करके तीनों लोकों में शांति की स्थापना की। तभी से गणेश जी का नाम महागणपति प्रसिद्ध हुआ।

यह सिर्फ 15 ही नाम है। गणेश जी को कुल 108 नामों से जाना जाता है। सभी नामों को एक साथ बताना संभव नहीं है। पहले जान लीजिए कि उनके यह सारे नाम क्या है। भविष्य में आपको सभी नाम के पूर्ण जानकारी हम प्रदान करेंगे। गणेश जी के शेष नाम –

16. एकाक्षर
17. गजवक्त्र
18. महागणपति
19. महेश्वर
20. मंगलमूर्ति
21. मूषक वाहन
22. निदीश्वरम
23. प्रथमेश्वर
24. शूपकर्ण
25. शुभम
26. सिद्धिदाता
27. सिद्धिविनायक
28. सुरेश्वरम
29. वक्रतुंड
30. अखुरथ
31. अलंपत
32. अमित
33. अनंतचिदरुपम
34. अवनीश
35. अविघ्न
36. भीम
37. भूपति
38. भुवनपति
39. बुद्धप्रिय
40. बुद्धि विधाता
41. चतुर्भुज
42. देवदेव
43. देवांतक नाशकारी
44. देवव्रत
45. देवेन्द्राशिक
46. धार्मिक
47. दूर्जा
48. द्वैमातुर
49. एकदंष्ट्र
50. ईशान पुत्र
51. गदाधर
52. गणाध्यक्षिण
53. गुणिन
54. हरिद्र
55. हेरंब
56. कपिल
57. कवीश
58. कीर्ति
59. कृपाकर
60. कृष्णपिंगाक्ष
61. क्षेमंकरी
62. क्षिप्रा
63. मनोमय
64. मृत्युंजय
65. मूढ़ाकरम
66. मुक्तिदायी
67. नादप्रतिष्ठित
68. नमस्तेतु
69. नंदन
70. पाषिण
71. पीतांबर
72. प्रमोद
73. पुरुष
74. रक्त
75. रुद्रप्रिय
76. सर्वदेवात्मन
77. सर्व सिद्धांत
78. सर्वात्मन
79. शांभवी
80. शशिवर्णम
81. शुभ गुण कानन
82. श्वेता
83. सिद्धिप्रिया
84. स्कंद पूर्वज
85. सुमुख
86. स्वरूप
87. तरुण
88. उद्दण्ड
89. उमा पुत्र
90. वरगणपति
91. वरप्रद
92. वरदविनायक
93. वीर गणपति
94. विद्यावारिधि
95. विघ्नहर
96. विघ्नहर्ता
97. विघ्न विनाशन
98. विघ्नराज
99. विघ्नराजेन्द्रं
100. विघ्नविनाशाय
101. विघ्नेश्वर
102. विकट
103. विनायक
104. विश्व मुख
105. यज्ञ काय
106. यशस्कर
107. यशस्विन
108. योगा अधिप

भगवान गणेश के नाम पर बच्चों के नाम रखने का महत्व

बच्चे के नाम का चुनाव माता-पिता के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। भगवान गणेश जी से जुड़े नाम शुभता, सफलता और बुद्धि का आशीर्वाद देने के साथ ही एक सुंदर और सार्थक नाम का विकल्प भी प्रदान करते हैं।

सनातन संस्कृति में कहा जाता है कि बच्चों के नाम के हिसाब से ही उनका व्यक्तित्व निर्मित होता है और बच्चे का मन मस्तिष्क भी अपने नाम को ग्रहण करके उसके अनुरूप अग्रसर होता है। गणेश जी को बल, बुद्धि एवं ज्ञान का देवता कहा जाता है, इसलिए परिजन अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य और उनके अच्छे चरित्र निर्माण के भाव के साथ अपने बच्चों का नाम श्री गणपति के नाम अनुसार रखते हैं। इसके पीछे विश्वास होता है कि श्री गणपति के नाम पर अपने बच्चों का नाम रखने से गणेश जी का आशीर्वाद बच्चों पर बना रहेगा एवं उनके व्यवहार में भी श्री गणपति जी के गुणों की छवि रहेगी।

गणेश चतुर्थी क्या है?

गणेश चतुर्थी हिंदू संस्कृति का एक मुख्य त्यौहार है। गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। पुरानी कथाओं के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को हुआ था इसीलिए यह उत्सव चतुर्थी से आरंभ होता है। इसी दिन रिद्धि सिद्धि के दाता गणपति बप्पा को घर लाए जाते हैं और 10 दिनों तक विधि विधान से उनकी पूजा अर्चना करने के बाद बड़ी धूमधाम से अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन किया जाता है।

यह बात तो हम सभी जानते हैं की गणेश चतुर्थी के दिन हम सबके प्रिय श्री गणेश का जन्मदिन मनाया जाता है। मगर अभी भी कई लोग यह बात नहीं जानते कि गणेश जी को अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जित क्यों कर दिया जाता है। लोगों के मन में अक्सर यह सवाल रहता है कि श्री गणपति जी इतनी धूमधाम श्रद्धा भाव से प्रतिष्ठा करने के बाद 10 दिन बाद क्यों बाबा को विसर्जित कर दिया जाता है।

गणेश विसर्जन के पीछे मान्यता है की वेदव्यास जी ने गणेश भगवान से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की तो गणेश जी 10 दिनों तक बिना रुके महाभारत लिखते रहे। जब वेदव्यास जी ने देखा तो पाया कि गणेश जी का तापमान बहुत बड़ा हुआ है और दसवें दिन उन्हें नदी में स्नान करके 10 दिनों तक विधिपूर्वक पूजन करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है।

श्री गणेश को समृद्धि ज्ञान और सौभाग्य का देवता माना जाता है। ऐसे में मान्यता है कि गणेश पूजन से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है। यह भी कहा जाता है कि गणेश उत्सव के 10 दिनों तक भगवान श्री गणेश पृथ्वी पर ही रहते हैं और अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं। ऐसे में भक्त अपने गणपति को प्रसन्न करने के लिए बड़ी ही श्रद्धा भाव से उनकी पूजा अर्चना करते हैं और उत्सव मनाते हैं।

वैसे तो पूरे भारतवर्ष में गणेश उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मगर महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। खासकर मुंबई में तो यह उत्सव बड़ी जोर शोर से मनाया जाता है। यहां पर गणेश उत्सव के दौरान संपूर्ण देश के लोगों की नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग गणेश उत्सव का आनंद लेने के लिए आते हैं। हर जगह अलग-अलग रूप में बाबा के प्रतिमा स्थापित की जाती है। बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते हैं पंडाल में भगवान गणेश की पूजा पूरी विधि विधान से की जाती है। मोदक व लड्डू का भोग लगाया जाता है। नियमित प्रातः और संध्या की आरती की जाती है। बड़ी संख्या में लोग श्री गणेश के दर्शन करने आते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि दर्शन करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

निष्कर्ष

यह विघ्नहर्ता गणेश जी के 15 नाम और उनके अर्थ है। इस लेख में हमने उन्हें यह नाम कैसे प्राप्त हुए उसे कहानियों के जरिए बताया है। भगवान गणेश सफलता बुद्धि खुशी और शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं और इन विशेषताओं को देवों ने उनके नाम के रूप में श्रेय दिया है। लोग अनंत काल से सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करते आ रहे हैं और अनंत काल तक सर्वप्रथम उन्हें पूजते रहेंगे। इसके अलावा हर साल गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों में भी श्री गणेश के गुणों को उनके भक्तों द्वारा किया जाता है।

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